कान्स अब सिनेमा का जश्न नहीं, रेड कार्पेट का खेल बन गया है- हाउस अरेस्ट फेम मुस्कान अग्रवाल ने बेबाकी से रखी राय - Manoranjan Metro

    Cannes is no longer a celebration of cinema, a red carpet game - House arrest fame Muskan Aggarwal kept an opinion with impunity - Manoranjan Metro

    13 मई से शुरू हुए 78वें Cannes Film Festival ने एक बार फिर फ्रेंच रिवेरा की चमक-धमक को दुनिया के सामने पेश किया है। जहां एक ओर यह फेस्टिवल ऐतिहासिक रूप से दुनिया के सबसे प्रभावशाली सिनेमा को मंच देता रहा है, वहीं हाल के वर्षों में यह अपने मूल उद्देश्य से भटकता नजर आ रहा है। हाउस अरेस्ट फेम मुस्कान अग्रवाल ने इस बदलते स्वरूप पर बेबाक और ईमानदार राय रखते हुए कहा है कि कान्स अब एक फैशन शो जैसा हो गया है, जहां सिनेमा की जगह सोशल मीडिया ट्रेंड्स ने ले ली है।

    मुस्कान कहती हैं, “पहले कान्स में उन्हीं लोगों को आमंत्रित किया जाता था जो सिनेमा की कला में कुछ गहराई से योगदान दे रहे थे—चुनिंदा कलाकार, निर्देशक और लेखक। उस समय रेड कार्पेट पर एक सम्मान और गरिमा थी। लेकिन आज, सोशल मीडिया और इन्फ्लुएंसर कल्चर की वजह से लगभग कोई भी वहां पहुंच सकता है। इसका असली सार अब फीका पड़ गया है।”

    Cannes is no longer a celebration of cinema, a red carpet game - House arrest fame Muskan Aggarwal kept an opinion with impunity - Manoranjan Metro

    वे नैंसी त्यागी जैसे उदाहरणों की ओर इशारा करते हुए कहती हैं, “मैं नैंसी त्यागी जैसे लोगों की क्रिएटिविटी की सराहना करती हूं, लेकिन हमें ये भी देखना चाहिए कि अब कैमरा उन लोगों पर है जिनका इस फेस्टिवल से सीधा संबंध नहीं है। आज ये देखने में ज्यादा दिलचस्पी है कि 'कौन क्या पहन कर आया' ना कि 'किसने क्या बनाया।'”

    Also Read : संगीतमय श्रद्धांजलि के रूप में एमिवे बंटाई ने जारी किया ट्रिब्यूट टू सिद्धू मूसेवाला - Manoranjan Metro

    मुस्कान इस ट्रेंड को इंडस्ट्री की एक व्यापक समस्या से जोड़ते हुए कहती हैं, “आज के समय में असली कलाकारों को उतनी अहमियत नहीं मिलती। जो लोग सच्चे मन से अभिनय, निर्देशन और कहानी कहने की कोशिश कर रहे हैं, वे वायरल कंटेंट और दिखावे के शोर में कहीं खो जाते हैं।”

    उनका मानना है कि फैशन और ग्लैमर का एक हिस्सा होना ठीक है, लेकिन वो सिनेमा की आत्मा को ढक ना दे। “रेड कार्पेट कलाकारों के काम का उत्सव होना चाहिए—ना कि सिर्फ रील बनाने और वायरल होने का मंच। हमें खुद से पूछना होगा कि क्या हम अब भी कान्स में सिनेमा का सम्मान कर रहे हैं, या बस इंस्टाग्राम के लिए फोटो खिंचवाने आए हैं?”

    मुस्कान की यह टिप्पणी इंडस्ट्री के कई कलाकारों के विचारों की गूंज है, जो मानते हैं कि Cannes अब फोटो-ऑप बनकर रह गया है। भले ही वहां आज भी विश्वस्तरीय फिल्में दिखाई जाती हैं और मशहूर निर्देशकों की मौजूदगी होतीहै, लेकिन चर्चा अक्सर फैशन और इन्फ्लुएंसर के इर्द-गिर्द ही सिमट जाती है। मुस्कान का सवाल वाजिब है — क्या हम अब भी सिनेमा का जश्न मना रहे हैं, या सिर्फ लाइक्स के पीछे भाग रहे हैं?

    Previous Post Next Post