मुंबई को हमेशा "सपनों का शहर" कहा जाता है। लेकिन अभिनेता सूरज बेरी — जो कि मशहूर अभिनेता सुदेश बेरी के बेटे हैं — के लिए यह शहर सिर्फ सपनों का नहीं, बल्कि संघर्ष, जज़्बा और चुपचाप सहने की ताक़त का भी शहर है। एक बातचीत में सूरज ने बताया कि मुंबई कैसे यहां रहने वाले हर इंसान को गढ़ती है, चाहे वह अभिनेता हो या आम इंसान।
सूरज कहते हैं, “एक्टर के लिए मुंबई मौका है, पहचान है और स्टार बनने का सपना है। लेकिन एक आम मुंबईकर का सपना छोटा और सीधा होता है — अपना छोटा सा घर, बच्चों की पढ़ाई और परिवार की आर्थिक सुरक्षा। जहां एक्टर्स ऑडिशन, रिजेक्शन और अनिश्चित कमाई से जूझते हैं, वहीं आम लोग भीड़-भाड़ वाली ट्रेनों, ट्रैफिक, बढ़ते किराए और नौकरी की असुरक्षा से जूझते हैं।”
उनके अनुसार दोनों दुनियाओं में फर्क जरूर दिखता है, लेकिन असलियत में दोनों के संघर्ष बहुत मिलते-जुलते हैं। “ट्रैफिक किसी को नहीं छोड़ता — चाहे कोई ट्रेन के दरवाज़े पर लटका हो या फिर किसी बड़ी गाड़ी में बैठा स्टार। बढ़ती महंगाई सब पर असर डालती है। फर्क बस इतना है कि कुछ लोग थोड़े सुरक्षित हैं। आखिर में, हर कोई अपने-अपने ढंग से जीने और टिके रहने की जद्दोजहद करता है,” सूरज कहते हैं।
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सूरज मानते हैं कि कलाकारों पर यह ज़िम्मेदारी है कि वे अपनी पहचान और प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल करके ग्लैमर और असल ज़िंदगी के बीच की दूरी को कम करें। “मीडिया अक्सर सिर्फ रेड कार्पेट, आलीशान घर और छुट्टियों को दिखाता है। लेकिन स्टार बनने के पीछे सालों की मेहनत और रिजेक्शन छिपा होता है। इसी तरह, चमकते आसमान के पीछे आम लोगों की मेहनत है, जो इस शहर को जिंदा रखते हैं। उनके संघर्ष और उनकी जीत को भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए,” वे कहते हैं।
मुंबई को वह अपनी सबसे बड़ी गुरु मानते हैं। “इस शहर ने मुझे सिखाया है — धैर्य रखना, लाइन में खड़े रहना, ट्रैफिक झेलना और ऑडिशन रूम में इंतज़ार करना। इसने मुझे गिरकर उठना और आगे बढ़ते रहना सिखाया। सबसे बड़ी बात, इसने मुझे उम्मीद दी है — कि कल आज से बेहतर हो सकता है,” सूरज बताते हैं।
अगर उन्हें किसी एक बड़ी समस्या पर ध्यान देने का मौका मिले तो वे घर और बढ़ती महंगाई को चुनेंगे। “यह शहर पूरे देश से सपने देखने वालों को खींचता है, लेकिन कई लोग सपने छोड़ देते हैं, क्योंकि यहां रहना ही बहुत महंगा है। मैं अपनी कहानियों और काम से इन सच्चाइयों को सामने लाना चाहता हूं — चॉल्स, दूर-दराज़ के इलाके और रोज़ की मेहनत। ताकि मुंबई सिर्फ सपनों का शहर ही न रहे, बल्कि ऐसा शहर बने जहां वे सपने सच भी हो सकें,” वे कहते हैं।
