
उन्होंने कहा, “लोग अक्सर एक्टिंग में हसल (संघर्ष) की बात करते हैं। लेकिन मेरे लिए हसल असली काम नहीं है—वो तो मुझे बहुत पसंद है। असली हसल है ये न पता होना कि अगला काम कब मिलेगा। कभी बहुत काम होता है, तो कभी लंबे समय तक कुछ भी नहीं। उस समय को शांति और संतुलन के साथ निकालना ही सबसे बड़ी चुनौती है। और ये अनिश्चितता तो सफलता के बाद भी बनी रहती है।”
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उन्होंने आगे कहा, “चाहे आप अच्छा पैसा कमा रहे हों, लेकिन आपके खर्च और जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती जाती हैं। आपको कभी पूरा भरोसा नहीं होता कि अगला प्रोजेक्ट कब आएगा या वह पिछले जितना अच्छा होगा या नहीं। ये इंडस्ट्री ऐसी ही है—थोड़ी जटिल और अस्थिर। आपको इसे अपनाना ही पड़ता है।”
राहुल जो काफी समय से इस इंडस्ट्री में हैं, मानते हैं कि यह काम कभी आसान नहीं होता। हर रोल अपनी अलग चुनौती लेकर आता है। हाँ, अनुभव से कुछ चीजें संभालना आसान हो जाता है, लेकिन हर किरदार का इमोशनल हिस्सा अलग होता है।
उन्होंने कहा, “लोग सोचते हैं कि समय और अनुभव के साथ इमोशन्स में उतरना आसान हो जाता है। हाँ, आप अपने इमोशन्स को बेहतर समझने लगते हैं। लेकिन हर रोल नई सोच, नई भावना लेकर आता है। एक ही सिचुएशन—जैसे दुःख, गुस्सा या खुशी—हर किरदार में अलग महसूस होती है। भावनाएँ कभी एक जैसी नहीं होतीं। कुछ किरदारों में बहुत गहराई तक जाना पड़ता है, जबकि कुछ थोड़े हल्के होते हैं। लेकिन हर बार ये एक नई यात्रा होती है। इसलिए मैं नहीं कहूंगा कि यह काम कभी आसान हो जाता है। हर बार एक नई चुनौती होती है।