अभिनेता आदेश चौधरी, जो हाल ही में वेब सीरीज सबसे बड़ा रुपैया में नजर आए, ने टीवी में अपनी मजबूत पहचान बनाने के बाद अब डिजिटल दुनिया की ओर कदम बढ़ाया है। हाल ही में एक बातचीत में आदेश ने ओटीटी और सिनेमा के बदलते स्वरूप पर अपने विचार साझा किए। भले ही अब थिएटर और डिजिटल रिलीज़ के बीच की रेखाएं धुंधली होती जा रही हैं, लेकिन आदेश का मानना है कि जहां OTT ने दर्शकों की दुनिया बदल दी है, वहीं सिनेमाघरों का जादू अभी भी बरकरार है।
आदेश कहते हैं, “एक अभिनेता के तौर पर, जब आपकी फिल्म थिएटर में रिलीज़ होती है तो उसका अलग ही रोमांच होता है। बड़े पर्दे पर अपनी मेहनत को देखना, वो साउंड, वो विजुअल्स, और सामने बैठी ऑडियंस की रिएक्शन—ये सब मिलकर एक अलग ही अनुभव देते हैं। ओटीटी सुविधाजनक है, और इसकी पहुंच भी ज़्यादा है, लेकिन थिएटर का जो आत्मा वाला अनुभव है, उसकी बात ही अलग है।”
जब उनसे पूछा गया कि आज के समय में कौन-सी फिल्में अब भी लोगों को थिएटर तक खींच लाती हैं, तो आदेश ने भावनाओं और भव्यता की ओर इशारा किया। “दर्शक या तो कुछ बहुत बड़ा और देखने लायक चाहते हैं या फिर एक ऐसी कहानी जो दिल को छू जाए। एक्शन, गहरी मानवीय कहानियाँ, और नॉस्टैल्जिया से जुड़ी फिल्में अच्छा कर रही हैं। अगर कोई फिल्म ऐसा अनुभव दे रही है जो घर बैठे मुमकिन नहीं है, तो लोग ज़रूर बाहर निकलेंगे।”
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आदेश के लिए एक ऐसा जॉनर है जो कभी फेल नहीं होता। “रोमांटिक ड्रामा जिसमें अच्छा संगीत हो या फिर पारिवारिक मनोरंजन—ये हमेशा चलने वाले फॉर्मूले हैं। लेकिन आजकल थ्रिलर और बड़े स्केल की एक्शन फिल्में, जिनकी कहानी कसी हुई हो, दर्शकों को ज़रूर थिएटर तक खींच लाती हैं। सिनेमा में उस तेज़ रफ्तार रोमांच का अनुभव लोग पसंद करते हैं।”
मेट्रो और सैयारा जैसी हाल की सफल फिल्मों को देखकर आदेश को लगता है कि अब चीजें फिर से बदल रही हैं। “बिलकुल! बड़े पर्दे का जादू लौट रहा है। लोग फिर से वही एनर्जी महसूस करना चाहते हैं। ये फिल्में ये साबित कर रही हैं कि अगर कंटेंट दिल से जुड़ता है और सिनेमाई अनुभव दमदार हो, तो दर्शक ज़रूर वापस आएंगे।”
भले ही डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने अपनी जगह बना ली हो, आदेश को पूरा विश्वास है कि सिनेमा हॉल का आकर्षण कभी खत्म नहीं होगा। “हां, ओटीटी सुविधाजनक है और घर बैठे मनोरंजन देता है, लेकिन थिएटर सिर्फ फिल्म देखने की जगह नहीं है—वो यादें बनाने की जगह है। पहली डेट हो, फैमिली आउटिंग हो या दोस्तों के साथ का मज़ा—थिएटर का अपना एक कल्चरल चार्म है। आंकड़े ऊपर-नीचे हो सकते हैं, लेकिन उसका असली जादू हमेशा रहेगा।”
