एक्टर सानंद वर्मा का कहना है कि ओटीटी ने बॉलीवुड का पूरा खेल बदल दिया है। उनका मानना है कि आजकल लोग यह सोचकर थिएटर जाने से बचते हैं कि फिल्म महंगे टिकट के लायक है या नहीं, और फिर इंतज़ार करते हैं कि वही फिल्म ओटीटी पर फ्री में देखने को मिल जाए।
सानंद कहते हैं, “ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर आजकल बहुत टैलेंटेड डायरेक्टर्स, प्रोड्यूसर्स और फिल्ममेकर्स काम कर रहे हैं। लेकिन इतने टैलेंट के बावजूद भी थिएटर में रिलीज़ हुई फिल्म बहुत जबरदस्त होगी—इसकी कोई गारंटी नहीं होती। यही वजह है कि लोग थिएटर में पैसे खर्च करने से बचते हैं। भारत में एक आम परिवार के लिए थिएटर जाना, खासकर मल्टीप्लेक्स में, बहुत महंगा पड़ता है। जबकि ओटीटी पर बहुत सारा कंटेंट कम दाम में और कभी भी देखा जा सकता है, इसलिए अब लोग सोच-समझकर ही थिएटर जाते हैं।”
वो आगे कहते हैं, “लोग तभी थिएटर जाएंगे जब उन्हें लगे कि फिल्म में कुछ ऐसा खास है जो घर पर नहीं देखा जा सकता। आजकल एक ट्रेंड और भी देखने को मिल रहा है—पुरानी हिट और अच्छी फिल्मों को दोबारा थिएटर में दिखाया जा रहा है। इससे नई पीढ़ी को भी वो फिल्में बड़े पर्दे पर देखने का मौका मिल रहा है। ऐसे खास एक्सपीरियंस के लिए लोग फैमिली, पार्टनर या दोस्तों के साथ थिएटर जाना पसंद करते हैं। ये ट्रेंड आगे भी चलेगा।”
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जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने आखिरी कौन सी फिल्म थिएटर में देखी, तो उन्होंने कहा, “मैंने स्त्री 2 और वेड़ा देखी क्योंकि मुझे जॉन अब्राहम और राजकुमार राव बहुत पसंद हैं। किसी भी फिल्म के हिट होने के लिए उसकी कहानी दमदार होनी चाहिए, प्रोडक्शन अच्छा होना चाहिए और उसमें एंटरटेनमेंट का तड़का होना चाहिए। अगर फिल्म में नए एक्टर्स हैं, तो उसका कंटेंट बहुत खास होना चाहिए और साथ ही पब्लिसिटी, मार्केटिंग और पोस्टर भी शानदार होने चाहिए। जब फिल्म का पोस्टर ही लोगों को खींचेगा तभी थिएटर तक लोग पहुंचेंगे। फिल्म के लोकेशन्स, सिनेमेटोग्राफी, कैमरा वर्क, स्पेशल इफेक्ट्स सबकुछ टॉप क्लास होना चाहिए। और एक्टिंग भी दमदार होनी चाहिए, चाहे वो नए चेहरे हों या पुराने सितारे।”
सानंद कहते हैं कि फिल्म के हिट होने के पीछे कई बातें जुड़ी होती हैं। “अगर फिल्म अच्छी है और उसका प्रचार सही तरीके से किया गया है, तो वो ज़रूर हिट होगी। फिल्म का कंटेंट अगर मज़बूत है और लोगों में उस फिल्म को लेकर चर्चा है, तो उसे चलने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन फिर भी, कई बार अच्छी फिल्में भी नहीं चलतीं। जैसे मेरा नाम जोकर और शोले को लोग उनकी रिलीज़ के वक्त नहीं समझ पाए, लेकिन बाद में वो क्लासिक बन गईं। फिल्म इंडस्ट्री का यही सच है—यहां कुछ भी पक्का नहीं होता। ये बिल्कुल मौसम की तरह है, कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।”
आखिर में उन्होंने कहा, “एक फिल्म तभी चलेगी जब उसका दिल सही जगह पर हो। फिल्म की कहानी बहुत मायने रखती है, लेकिन फिर भी उसका रिज़ल्ट हमेशा अनप्रेडिक्टेबल ही रहता है। इसलिए इस इंडस्ट्री में कुछ भी निश्चित नहीं है।”