बहुरंगी अभिनय के लिए पहचाने जाने वाले अभिनेता सानंद वर्मा, जिन्होंने मर्दानी, पटाखा, इंडिया लॉकडाउन, थैंक गॉड और बबली बाउंसर जैसी फिल्मों में दर्शकों को प्रभावित किया है, अब जल्द ही विक्रांत मैसी अभिनीत आँखों की गुस्ताखियां में नजर आएंगे, जो 11 जुलाई को रिलीज हो रही है।
अपने किरदार के बारे में बात करते हुए सानंद कहते हैं,
“मेरा किरदार ‘शौकी लाल’ है—नाम ही काफी मजेदार और हटकर है। वो एक बहुत ही मस्तमौला, मज़ाकिया और बातूनी ड्राइवर है। वह हर वक़्त बोलता रहता है, बिल्कुल ‘शोले’ की बसंती की तरह—ड्राइव भी करता है और रुकता ही नहीं बोलने में! उसकी बातें, एनर्जी और रिदम फिल्म में एक नया रंग भरती हैं। शुरुआत में मैंने सोचा कि ये बंदा गुटखा चबाता होगा, तो उसी हिसाब से तैयारी की। लेकिन सेट पर जब डायरेक्टर संतोष सिंह ने कहा कि इसे बिना गुटखे के निभाओ, तो वो और बेहतर बैठ गया। चूंकि यह एक नेचुरल किरदार है, इसलिए ज़्यादा तैयारी की ज़रूरत नहीं थी। मैंने बहुत से ऐसे रियल-लाइफ ड्राइवर्स को देखा है, जो बहुत बोलते हैं—वहीं से इंस्पिरेशन लिया।”
वो आगे कहते हैं, “मैं पिछले 11 सालों से ‘भाबीजी घर पर हैं’ में सक्सेना जी जैसे फास्ट-टॉकिंग किरदार निभा रहा हूं, तो ऐसी डायलॉग डिलीवरी मेरे लिए अब नेचुरल है। मैं हर वक्त लोगों को ऑब्ज़र्व करता रहता हूं—कई ड्राइवर्स देखे हैं, जो बहुत ही अभिव्यक्तिपूर्ण और एनर्जेटिक होते हैं। और हां, मैंने शोले 15 बार देखी है—बसंती हमेशा मेरे लिए एक रेफरेंस पॉइंट रही है! फिल्म की शूटिंग उत्तराखंड की पहाड़ियों में हुई, जहां खतरनाक मोड़ थे, लेकिन मैं पिछले 22 सालों से गाड़ी चला रहा हूं, तो वो हिस्सा तो बड़ा मजेदार था।”
डायरेक्टर और कास्ट के साथ अपने अनुभव के बारे में सानंद कहते हैं, “डायरेक्टर संतोष सिंह के साथ मैंने पहले अपहरण 2 में काम किया है। वह सिर्फ एक अच्छे निर्देशक ही नहीं, एक बेहतरीन इंसान भी हैं। हम उन्हें ‘सैंडी’ कहते हैं। शुरुआत में उन्होंने मुझे इस रोल के लिए नहीं सोचा था, क्योंकि उन्हें लगा कि यह छोटा रोल है। तब मैंने उन्हें खुद कॉल किया और कहा, ‘कोई भी रोल छोटा नहीं होता।’ शुक्र है उन्होंने मेरी बात मानी—और यह किरदार फिल्म का हाई पॉइंट बन गया।”
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“बाकी की कास्ट भी कमाल की थी। विक्रांत मैसी शानदार अभिनेता हैं—बहुत प्रोफेशनल और फोकस्ड। उनके साथ काम करके बहुत अच्छा लगा। शनाया कपूर, जो इस फिल्म से डेब्यू कर रही हैं, उन्होंने एक सीन में कट बोलने के बाद भी रोती रहीं—इतना डूब गई थीं किरदार में। वो बहुत डाउन टू अर्थ हैं, कोई स्टार-किड वाला एटीट्यूड नहीं। उनकी परवरिश उनके काम में झलकती है और मुझे यकीन है वो बहुत आगे जाएंगी।”
फिल्म के सेट के माहौल को याद करते हुए सानंद बताते हैं, “मसूरी में शूटिंग हुई और सेट का वाइब बहुत पॉजिटिव था। हर कोई—from प्रोडक्शन टीम से लेकर क्रू तक—बहुत प्रोफेशनल, गर्मजोशी से भरे और समर्पित थे। यह एक मजेदार और सहयोगपूर्ण अनुभव रहा।”
टीवी, ओटीटी और फिल्मों के बीच संतुलन बनाने वाले सानंद बताते हैं कि बतौर अभिनेता उनकी पहली पसंद सिनेमा ही है। वो कहते हैं, “सिनेमा की बात ही अलग है। खुद को बड़े पर्दे पर देखना—उसका जो रोमांच है, जो जुनून है—वो कहीं और नहीं मिलता। फिल्म की शेल्फ लाइफ लंबी होती है। हम आज भी दशकों पुराने किरदारों और एक्टिंग की बातें करते हैं। यही है सिनेमा की ताकत।
ओटीटी और टेलीविजन भी महत्वपूर्ण माध्यम हैं और मैं उनमें भी पूरी मेहनत से काम करता हूं। लेकिन जब बात दर्शकों के एक्सपीरियंस की हो, तो थिएटर की बराबरी कोई नहीं कर सकता। कई बार फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट महीनों पहले मिलती है, जिससे डीप प्रेप में मदद मिलती है। और कभी-कभी सब कुछ लास्ट मिनट होता है—जैसे सेक्रेड गेम्स का पूल सीन या पटाखा और छिछोरे के मेरे सीन—वो तो सेट पर ही इम्प्रोवाइज किए गए थे और लोगों को पसंद भी आए। मैं कभी सिर्फ रट्टा मार कर एक्टिंग नहीं करता—मैं माहौल, को-एक्टर्स और सीन की मूड को आत्मसात करता हूं और फिर अपनी इंस्टिंक्ट्स से काम करता हूं।
मेरे लिए असली इनाम है—दर्शकों की सराहना। वो पैसे से भी बड़ा होता है। और फिल्मों में वो सराहना लंबे समय तक बनी रहती है। इसलिए सिनेमा हमेशा मेरी पहली प्राथमिकता रहेगा।”